जीवन

जीवन
स्वप्न

Thursday, September 15, 2011

पह्चान कौन.................




ये दो दिन पह्ले की बात है मेरे स्कूल से लौटने के समय गांव के कुछ बच्चों ने बताया गुरु जी वहां बाग मे
कुछ अण्डे है मैने बच्चो से पूछा की अण्डे कितने है और किसके है बच्चों ने जो बताया उसे सुनकर मेरी खुशी दुगनी हो गयी आज का कार्यक्रम तय किया और स्कूल से सीधा जा पहुंचा आम की बाग मे मैने बच्चों से पूछा कंहा बच्चे ने कहा वंहा पेड के नीचे  मैने कहा नही दिख रहा तभी उस छोटे से बच्चे ने अण्डों के पहरेदार को दूर खेद दिये और जो कुछ भी मुझे दिखा वो मैने अपने मोबाईल कैमरे मे कैद कर लिया अब आप लोग बताईए कि इन अण्डों का पहरेदार कौन था.........



आप के विचारो के प्रवाह के इंतजार में


mirchinamak.blogspot.com

अगर हार जाये तो हम बता दे कि हम भारत के राष्ट्रीय हैं

Tuesday, September 13, 2011

क्या कहा आपका मोबाईल खो गया है ....

चलिये खोजते हैं आपका मोबाईल 
लगाईये नीचे दिये गये लिन्क पे चट्का......




http://mgismobilesecurity.com/lost_mobile_request.php

Monday, September 12, 2011

दिल्ली चलो ..... पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त से आगे

 पूरी कहानी पढ्ने के लिये
 http://mirchinamak.blogspot.com/2011/09/blog-post_3297.htm



अब तक आप ने पढा कि बम का संकट चल चुका था और हम आगे के सपनों मे पेंग बढा सकते थे



अब आगे पढें...






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हमने डरते संकोच करते अपने पैर सीधे किये यहां मैं बताता चलूं कि मै और मेरी सहयात्री ट्रेन की आर०ए०सी बर्थ पे थे उसने भी संकोच का दामन छोड कर अपने पैर सीधे कर लिये गर्मी की सुहानी ठंडी रात थी हवा अपने पूरे शबाब पे थी बीच बीच मे लड्की अगंडायी ले लेती थी जो मुझे कुछ परेशानी मे डाल देती थी मेरा मतलब मेरे मन ईमान को डोला जाती थी पर मैने भी तय किया था कुछ भी हो जाय मै अपने पे कायम रहूंगा
ठंड के कारण आखिर मे हम चादर ओढ्ने पे मजबूर हो गये पर हमारी आखों मे नींद गायब थी
तो आखिर करते भी क्या समय बिताने के लिये बातों की चाशनी छानना शुरु कर दिया था लगभग रात के १ बजे थे ज्यादातर लोग सो चुके थे हम बात करने मे मस्त थे साथ मे जगजीत सिंह के नगमे भी साथ निभा रहे थे सुख दुख कि बाते तो हो नही सकती थी तो चले हम लड्की के जीवन परिचय के बारे मे जानने  पता चला कि अभी अभी M.B.A. पूरा हुआ है और जीविका कि तलाश मे महानगर यानि भारत की राजधानी कि ओर निकल पडी है न जाने ये कैसा इत्तिफाक था मै अपने जीवन से हारकर अपना जीवन विवेकानन्द केन्द्र के साथ काम करने के लिये समर्पित करने जा रहा था और इक वो थी जो अभी अपने जीवन की तरुणाई से बाहर निकल कर जीवन संग्राम मे भाग लेने जा रही थी हांलाकि हम दोनो ही थे सहयात्री उस अनोखे सफर दिल्ली चलो के कोई नही जानता कि समय कब किसको क्या रंग दिखायगा पर हम तो रंगमंच की कठपुतलियां है पता नही कौन सी डोर कब उठेगी और कौन सी कब टूटेगी पर जीवन की गाडी तो चलनी है और वो चलती रहेगी ,
इसी के साथ रात भी ढल रही थी और हमारी ट्रेन भी आगे बढ रही अगर नही बढ रही थी तो सिर्फ
हमारे दिल्ली चलो कि रात सुहानी और उसकी वो प्यारी सी कहानी , खैर जैसे तैसे रात गुजरनी थी सो वो गुजर गयी आखों मे कुछ अनकहे पलों कि कहानी लिये शायद जिंदगी के कुछ सवाल अधुरे ही रह्ते है हमारी आखो मे इक उदासी थी न जाने क्यों …….



आगे कुछ है अभी बताने को ये आप बताओ कि बताना है कि नही आप के जवाब के इंतजार में


Sunday, September 11, 2011

दिल्ली चलो.....






दिल्ली चलो.....







मन बडा उदास था समझ मे नही आ रहा था क्या करु कभी मन
करता था कि आत्महत्या कर लूं पर दूसरे ही पल ये विचार आया कि
नही आत्महत्या करना तो पाप है बस  इसी सोच विचार मे दिन कट रहे
थे बेचैनी बढती जा रही जीवन मे कोई भी लक्ष्य नजर नही आ रहा हर ओर
निराशा के बादल छाये हुये थे इन सब निराशाओं का कारण मेरे जीवन का लक्ष्य
निर्धारित न होना था इसी उधेडबुन मे दिन कटे जा रहे थे , आपको बताता चलूं
कि मै इक ३० साल का बेरोजगार कंम्पूटर मे परा स्नातक (M.C.A.) जो
इक लम्बे समय से अपने घर वालों पर घर के मोह में या अपनी कायरता से बोझ बना हुआ था इक अदद
सरकारी नौकरी कि तलाश मे मारा मारा भटक रहक था और इस जग मे भगवान का
मिलना आसान था पर सरकारी नौकरी का मिलना सामान्य श्रेणी के लोगो को लगभग असंभव,
खैर इसको विराम देते हुए आते है मुख्य बात पे ,कुछ साल शायद सन २००३ में मेरा द्क्षिण भारत के
शहर कन्याकुमारी जाना हुआ था वहां विवेकानन्द शिला पे इक कागज का टुकडा मिला जिसमें
विवेकानन्द सेवाकेन्द्र के सेवा क्षेत्रो के बारे मे लिखा था हमने पढा और संभाल के रख लिया इनका विवेकानन्द सेवाकेन्द्र )





इक कार्यक्रम अरुणाचल प्रदेश मे अरुणोदय के नाम से चलता है मैने भी सोचा कि चलो कभी
मौका मिला तो मैं भी देश सेवा करुंगा लेकिन जीवन के अपने ही रंग है मेरी तलाश जारी थी पर जब
मै जब थक गया तो अपने आप से कहा जीवन अनमोल है इसको बेकार करने से कोई फायदा नही
चलो देश सेवा ही करते क्योंकि नौकरी तो मिली नही थी भाई बात की विवेकानन्द सेवाकेन्द्र कन्याकुमारी वालो से कई बार अपना जीवन परिचय भेजा दूरभाष से बात हुई आखिर मे हरी झण्डी मिल गयी और मुझे दिल्ली बुलाया गया सो कोई परेशानी की बात नही थी अपने साथ वाले बहुत लोग दिल्ली मे पहले से जमे हुए थे जल्दी से अपना चलित दुरभाष यंत्र उठाया जाने का कार्यक्रम तय निकल पडे भाई दिल्ली को ऎसे कि अब तो घर लौटना नही था नम आंखो


 से घर मे बगैर कुछ बताय हां इस बारे मे मेरी इक महिला मित्र को जरुर बताया था
आयी थी बेचारी मुझे विदा करने भरे आखों से लखनऊ जंकशन पे इंतजार खत्म हुआ गाडी प्लेटफार्म पे आ
चुकी थी बडी भीड थी पर अपने राम तो रिजर्वेशन वाले थे तो खुश थे कि अपनी तो सीट पक्की भाई अपनी सीट पकड के बैठ गये अपनी महिला मित्र से विदा ली अरे हां इक बात तो बताना ही भुल गया मित्र ने मेरे लिये कुछ खाने पीने का सामान भी लिया था जो मेरे मना करने के बाद भी मुझे थमा के चली गयी, गाडी के
छूटने से जरा पहले इक लडकी अपना समान लादे लगभग उसे घसीटते हुये मेरी सीट पे आके धम्म से बैठ
गयी खिड्की से हाथ निकाल कर अपने दोस्त से बात कर रही थी उसके दोस्त ने भाई इनका ध्यान रखियेगा
सीट नही मिली है किसी तरह एड्जस्ट कर लिजियेगा मुझे भी मन मांगी मुराद मिल गयी थी दिल्ली के सफर
का खूबसूरत नही कामचलाऊ हमसफर जो खूबसूरत थी





 वो तो चली गयी मुझे अलविदा कह के, ट्रेन धीरे धीरे रेंग्ने लगी और जल्द ही रफ्तार पकड ली जैसा कि ऊपर बताया भीड बहुत थी पर मैने भी अकेली लड्की पे तरस
खा के या अपने फायदे के लिये उसे आधी सीट दे दी गलियारे के बगल वाली R.A.C. सीट थी तो हम दोनो इक इक खिड्की पकड के बैठ गये पहले तो संकोच या मर्यादा वश मैं खामोश रहा पर मन मे कुछ हलचल
हो रही थी इसी बीच उस लड्की के फोन भी आ रहे शायद उसी लड्के के थे जो उसे छोड्ने आया था
तकरीबन २ घण्टे शराफत से सीधे पैर समेट के बैठे बैठे उबने के बाद मैने सामने वाली लडकी से पुछा कि
क्या मै अपने पैर सीधे कर लूं लड्की ने जवाब दिया मन तो मेरा भी कर रहा था पर संकोच कर रही
थी कि इक तो आपने अपनी सीट शेयर की और अब मै आप से पैर फैलाने के लिये कैसे कहूं ,
खैर जैसे तैसे बात चीत का श्री गणेश हुआ पर मै अपनी ही धुन मे मस्त घर से दोस्त से बिछड्ने का गम
लिये जगजीत सिंह की गजले  सुन रहा था अचानक इक मजेदार घटना हुई..........

रात ११ से ११.३० बजे के आस पास इक ग्रे कलर के ब्रीफकेस पर नजर पडी भाई आस पास के सहयात्रियों से पुछा गया लेकिन कोई भी उसे अपना बताने को तैयार नही सब परेशान तरह तरह की बातें होने लगी हम जो अब तक संकोच के मारे चुप बैठे थे लगे फटा फट लड्की से बतियाने , कोई कह रहा था इसमे बम है तो कोई
कह रहा था नही भाई किसी शरीफ आदमी का होगा छूट गया होगा , पर यहां तो मेरे और मेरे सहयात्री मेरा मतलब लड्की के पसीने छूट रहे थे क्योंकि वो ब्रीफकेस मेरी सीट के ठीक सामने वाले कोने पे था हम लोग भगवान का नाम जपने लगे और दूसरी तरफ पेट के चूहो ने अपनी खुराक न मिलने के कारण पेट मे जिन्दाबाद
मुर्दाबाद के नारे लगाते हुए खूब धमा चॊकडी लगा रखी थी ,मन मे आया मरना तो है तो क्यों न खा पी के मरा
जाय भाई अपने दोस्त का प्यार से दिया हुआ थैला देखा उसमे नमकीन , बिस्कुट ,केक ,और न जाने क्या क्या
अपने अपने अरमान लिये इन्तजार कर रहे थे अपने manners के कारण अकेले तो खा नही सकता था सो
भाई पूछ लिया सामने वाले से क्योंकि भाई पूछने मे क्या जाता है मेरे पूछ्ते ही वो चौंक पडी और बोली यहां
जान पे बनी है और आप को खाने की पडी है मैने कहा देखो मरना तो है ही तो भूखे पेट क्यों मरे हम दोनो ने
अपना अपना खाने का सामान निकाल कर मिल बांट के खाना शुरु ही किया था कि आ गये जगत के मामा
अरे भाई पुलिस (G.R.P.) वाले आते ही रौब गालिब करना शुरु किसका है किसका है ये ब्रीफकेस हमसे भी
पूछा हमने तो कहा अगर हमारा ही होता तो आप यहां क्या करते थक गये पूछ्ते पूछ्ते कोई नही बोला
अब बात अट्की की इस बैग का किया क्या जाय बैग को छूने के नाम पर पुलिस वालों की भी फट रही थी
और मै अड गया की भाई इस बैग को य़हां से हटाऒ लेकिन पुलिस वालो को तो जैसे सांप ही सूघ गया था
वो मेरी कोई बात सुनने वाले नही थे और मै छोड्ने वाला नही था वो बोले भाई चलती ट्रेन मे कहां ले जाय इस मुसीबत को अगला स्टेशन आने दो वहां पे उतार लेगे बात कुछ मेरे भी दिमाग मे उतरी कि सही तो कह रहा
है आखिर वो भी तो बाल बच्चे वाला है चलो मै तो मान गया और अपना ध्यान वापिस अपने रात्रि भोज जो प्यार से दिया गया था वो टूंगने (खाने) मे जुट गया खूब मिल बांट के खाया भाई आखिरी खाना ...
तभी सामने वाली सीट से अंकल जी उतरे और जब तक हम कुछ समझ पाते वो उस ब्रीफकेस को पैर से खिसकाने लगे हम सब का कलेजा मुंह को आ गया और सब लोग शोर मचाने लगे अरे भाई बम फट गया तो
पर अंकल जी थे बडे कलेजे वाले वो उसको खिसका के डिब्बे के दरवाजे तक छोड आये अब वहां की सीट वाले परेशान और साथ मे पुलिस वाले भी तब तक गाडी की लम्बी सीटी सुनाई दी बाहर खिडकी से देखा तो किसी शहर कि बिजली दूर झिलमिलाती नजर आ रही थी अब कुछ जान मे जान वापस आ रही थी लगभग १० से १२ मिनट बाद स्टेशन आया पुलिस वालो ने पह्ले से सूचना दे रक्खी थी ब्रीफकेस के स्वागत मे पूरा दस्ता मौजूद था आये और ले गये इस बिन बुलाय मेहमान (ब्रीफकेस) को अब हम सब के चेहरे देखने वाले थे खुल के मुस्कराते हुए सब ने यही कहा जान बची तो लाखो पाये और वो अकंल जी अपना सीना चौडा किया पूरे डिब्बे मे टहल रहे थे उधर हम अपना रात्रि भोज टूंग के सीट झाड रहे थे भाई पैर फैला के बैठने के लिये और क्या....


आगे पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त ...............इन्तजार करिये..

आप कुछ कहना चाहेंगे.......


हिन्दू आखिर लाचार क्यों..................


हिन्दू आखिर लाचार क्यों..................



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जिन आतातायियो ने हमार देश की अस्मिता को तार तार किया हमारी माओं, बहनों, बेटियों की आबरु खुले आम सड्कों पे तार तार किया हमे गुलामी का दंश झेलने के लिये मजबूर किया जबरन धर्म परिवर्तन कराया , मोहन दास करमचन्द गांधी की सनक के परिणाम स्वरुप देश का विभाजन कराया आज उन्ही के साथ अपना हक बांटने के लिये मजबुर क्यों किया जा रहा है दुहायी तो देते है गंगा जमुनी तहजीब की और जैसे ही अपना काम निकल जाता है पीछे से खंजर भोंकने मे जरा भी देरी नही करते, हमारे ये कमीने नेता चन्द सिक्कों के लिये अपनी मां को भी बेचने वाले हरामी हमे बताते है ये सब तुम्हारे भाई है थू है ऎसे भाई पर कल जो गिनती के थे
वो आज २५ करोड हो गये संख्या इतनी बढी की सभी राजनॆतिक दलो को उनके खिलाफ मुंह खोलते ही अपनी पार्टीयो का जनाधार खिसकता नजर आता है डा० साफ साफ कहता है कि यदि तुम्हारे शरीर का कोई हिस्सा बेकार हो गया हो तो उसे काट के फेक देने मे ही भलाई है उसको नासूर बनाने में जान का खतरा है पर यहां तो एक बार सर भी कटाया ( काश्मीर) पंजाब बटा देश को काटा फिर भी नासूर अभी भी कायम है और नारे लगाता है



"हंस के लिया है पाकिस्तान और आतंक के जोर से लेगे पूरा हिंदुस्तान 



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वो बिल्कुल सही सोंचते है क्योंकी देश हमारी प्राथमिकता नही है हमारी  प्राथमिकता है धन ,जाति, धर्म हम लडेंगे लेकिन घर मे सीमा पर या देश के दुश्मन से नही वो हमारी गायें काटे हमारे भाईयों को गाजर मूली की तरह बम विस्फोटो मे उडाये हमे कोई फर्क नही पड्ता जब भी कोई मुस्लिम आतकवादी पकड मे आया तुरंत ही मुल्लों , इमामों का बयान आ जाता है
आतंक का कोई मजहब नही होता

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अरे तो भाई ये तो बताओ पुरे विश्व मे आतंक के नाम पर नंगा नाच करने वाला उनका समर्थन करने  वाले      मुस्ल्मान ही क्यों हर आतंकवादी  जन्नत की तलाश में दूसरों को समय से पह्ले आतंक के नाम पर जिहाद के नाम पर उनका कत्ल करके उनकी लाशों पर नंगा नाच क्यो नाचता है

किसी ने खूब कहा है " न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दुस्तां वालो दास्तां भी न होगी तुम्हारी दास्तानों मे"
 जयहिन्द !

Monday, September 5, 2011

बुलन्द भारत की बुलन्द तस्वीर

कुछ कहना चाहते है जल्दी से कहिये मै इन्तजार कर रहा हुं....