पूरी कहानी पढ्ने के लिये
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अब तक आप ने पढा कि बम का संकट चल चुका था और हम आगे के सपनों मे पेंग बढा सकते थे
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हमने डरते संकोच करते अपने पैर सीधे किये यहां मैं बताता चलूं कि मै
और मेरी सहयात्री ट्रेन की आर०ए०सी बर्थ पे थे उसने भी संकोच का दामन छोड कर अपने पैर
सीधे कर लिये गर्मी की सुहानी ठंडी रात थी हवा अपने पूरे शबाब पे थी बीच बीच मे
लड्की अगंडायी ले लेती थी जो मुझे कुछ परेशानी मे डाल देती थी मेरा मतलब मेरे मन
ईमान को डोला जाती थी पर मैने भी तय किया था कुछ भी हो जाय मै अपने पे कायम रहूंगा
ठंड के कारण आखिर मे
हम चादर ओढ्ने पे मजबूर हो गये पर हमारी आखों मे नींद गायब थी
तो आखिर करते भी क्या
समय बिताने के लिये बातों की चाशनी छानना शुरु कर दिया था लगभग रात के १ बजे थे ज्यादातर
लोग सो चुके थे हम बात करने मे मस्त थे साथ मे जगजीत सिंह के नगमे भी साथ निभा रहे
थे सुख दुख कि बाते तो हो नही सकती थी तो चले हम लड्की के जीवन परिचय के बारे मे जानने पता चला कि अभी अभी M.B.A. पूरा हुआ है और जीविका
कि तलाश मे महानगर यानि भारत की राजधानी कि ओर निकल पडी है न जाने ये कैसा इत्तिफाक
था मै अपने जीवन से हारकर अपना जीवन विवेकानन्द केन्द्र के साथ काम करने के लिये समर्पित
करने जा रहा था और इक वो थी जो अभी अपने जीवन की तरुणाई से बाहर निकल कर जीवन संग्राम
मे भाग लेने जा रही थी हांलाकि हम दोनो ही थे सहयात्री उस अनोखे सफर दिल्ली चलो के
कोई नही जानता कि समय कब किसको क्या रंग दिखायगा पर हम तो रंगमंच की कठपुतलियां है
पता नही कौन सी डोर कब उठेगी और कौन सी कब टूटेगी पर जीवन की गाडी तो चलनी है और वो
चलती रहेगी ,
इसी के साथ रात भी
ढल रही थी और हमारी ट्रेन भी आगे बढ रही अगर नही बढ रही थी तो सिर्फ
हमारे दिल्ली चलो कि
रात सुहानी और उसकी वो प्यारी सी कहानी , खैर जैसे तैसे रात गुजरनी थी सो वो गुजर गयी
आखों मे कुछ अनकहे पलों कि कहानी लिये शायद जिंदगी के कुछ सवाल अधुरे ही रह्ते है हमारी
आखो मे इक उदासी थी न जाने क्यों …….
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