जीवन

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स्वप्न

Sunday, September 11, 2011

दिल्ली चलो.....






दिल्ली चलो.....







मन बडा उदास था समझ मे नही आ रहा था क्या करु कभी मन
करता था कि आत्महत्या कर लूं पर दूसरे ही पल ये विचार आया कि
नही आत्महत्या करना तो पाप है बस  इसी सोच विचार मे दिन कट रहे
थे बेचैनी बढती जा रही जीवन मे कोई भी लक्ष्य नजर नही आ रहा हर ओर
निराशा के बादल छाये हुये थे इन सब निराशाओं का कारण मेरे जीवन का लक्ष्य
निर्धारित न होना था इसी उधेडबुन मे दिन कटे जा रहे थे , आपको बताता चलूं
कि मै इक ३० साल का बेरोजगार कंम्पूटर मे परा स्नातक (M.C.A.) जो
इक लम्बे समय से अपने घर वालों पर घर के मोह में या अपनी कायरता से बोझ बना हुआ था इक अदद
सरकारी नौकरी कि तलाश मे मारा मारा भटक रहक था और इस जग मे भगवान का
मिलना आसान था पर सरकारी नौकरी का मिलना सामान्य श्रेणी के लोगो को लगभग असंभव,
खैर इसको विराम देते हुए आते है मुख्य बात पे ,कुछ साल शायद सन २००३ में मेरा द्क्षिण भारत के
शहर कन्याकुमारी जाना हुआ था वहां विवेकानन्द शिला पे इक कागज का टुकडा मिला जिसमें
विवेकानन्द सेवाकेन्द्र के सेवा क्षेत्रो के बारे मे लिखा था हमने पढा और संभाल के रख लिया इनका विवेकानन्द सेवाकेन्द्र )





इक कार्यक्रम अरुणाचल प्रदेश मे अरुणोदय के नाम से चलता है मैने भी सोचा कि चलो कभी
मौका मिला तो मैं भी देश सेवा करुंगा लेकिन जीवन के अपने ही रंग है मेरी तलाश जारी थी पर जब
मै जब थक गया तो अपने आप से कहा जीवन अनमोल है इसको बेकार करने से कोई फायदा नही
चलो देश सेवा ही करते क्योंकि नौकरी तो मिली नही थी भाई बात की विवेकानन्द सेवाकेन्द्र कन्याकुमारी वालो से कई बार अपना जीवन परिचय भेजा दूरभाष से बात हुई आखिर मे हरी झण्डी मिल गयी और मुझे दिल्ली बुलाया गया सो कोई परेशानी की बात नही थी अपने साथ वाले बहुत लोग दिल्ली मे पहले से जमे हुए थे जल्दी से अपना चलित दुरभाष यंत्र उठाया जाने का कार्यक्रम तय निकल पडे भाई दिल्ली को ऎसे कि अब तो घर लौटना नही था नम आंखो


 से घर मे बगैर कुछ बताय हां इस बारे मे मेरी इक महिला मित्र को जरुर बताया था
आयी थी बेचारी मुझे विदा करने भरे आखों से लखनऊ जंकशन पे इंतजार खत्म हुआ गाडी प्लेटफार्म पे आ
चुकी थी बडी भीड थी पर अपने राम तो रिजर्वेशन वाले थे तो खुश थे कि अपनी तो सीट पक्की भाई अपनी सीट पकड के बैठ गये अपनी महिला मित्र से विदा ली अरे हां इक बात तो बताना ही भुल गया मित्र ने मेरे लिये कुछ खाने पीने का सामान भी लिया था जो मेरे मना करने के बाद भी मुझे थमा के चली गयी, गाडी के
छूटने से जरा पहले इक लडकी अपना समान लादे लगभग उसे घसीटते हुये मेरी सीट पे आके धम्म से बैठ
गयी खिड्की से हाथ निकाल कर अपने दोस्त से बात कर रही थी उसके दोस्त ने भाई इनका ध्यान रखियेगा
सीट नही मिली है किसी तरह एड्जस्ट कर लिजियेगा मुझे भी मन मांगी मुराद मिल गयी थी दिल्ली के सफर
का खूबसूरत नही कामचलाऊ हमसफर जो खूबसूरत थी





 वो तो चली गयी मुझे अलविदा कह के, ट्रेन धीरे धीरे रेंग्ने लगी और जल्द ही रफ्तार पकड ली जैसा कि ऊपर बताया भीड बहुत थी पर मैने भी अकेली लड्की पे तरस
खा के या अपने फायदे के लिये उसे आधी सीट दे दी गलियारे के बगल वाली R.A.C. सीट थी तो हम दोनो इक इक खिड्की पकड के बैठ गये पहले तो संकोच या मर्यादा वश मैं खामोश रहा पर मन मे कुछ हलचल
हो रही थी इसी बीच उस लड्की के फोन भी आ रहे शायद उसी लड्के के थे जो उसे छोड्ने आया था
तकरीबन २ घण्टे शराफत से सीधे पैर समेट के बैठे बैठे उबने के बाद मैने सामने वाली लडकी से पुछा कि
क्या मै अपने पैर सीधे कर लूं लड्की ने जवाब दिया मन तो मेरा भी कर रहा था पर संकोच कर रही
थी कि इक तो आपने अपनी सीट शेयर की और अब मै आप से पैर फैलाने के लिये कैसे कहूं ,
खैर जैसे तैसे बात चीत का श्री गणेश हुआ पर मै अपनी ही धुन मे मस्त घर से दोस्त से बिछड्ने का गम
लिये जगजीत सिंह की गजले  सुन रहा था अचानक इक मजेदार घटना हुई..........

रात ११ से ११.३० बजे के आस पास इक ग्रे कलर के ब्रीफकेस पर नजर पडी भाई आस पास के सहयात्रियों से पुछा गया लेकिन कोई भी उसे अपना बताने को तैयार नही सब परेशान तरह तरह की बातें होने लगी हम जो अब तक संकोच के मारे चुप बैठे थे लगे फटा फट लड्की से बतियाने , कोई कह रहा था इसमे बम है तो कोई
कह रहा था नही भाई किसी शरीफ आदमी का होगा छूट गया होगा , पर यहां तो मेरे और मेरे सहयात्री मेरा मतलब लड्की के पसीने छूट रहे थे क्योंकि वो ब्रीफकेस मेरी सीट के ठीक सामने वाले कोने पे था हम लोग भगवान का नाम जपने लगे और दूसरी तरफ पेट के चूहो ने अपनी खुराक न मिलने के कारण पेट मे जिन्दाबाद
मुर्दाबाद के नारे लगाते हुए खूब धमा चॊकडी लगा रखी थी ,मन मे आया मरना तो है तो क्यों न खा पी के मरा
जाय भाई अपने दोस्त का प्यार से दिया हुआ थैला देखा उसमे नमकीन , बिस्कुट ,केक ,और न जाने क्या क्या
अपने अपने अरमान लिये इन्तजार कर रहे थे अपने manners के कारण अकेले तो खा नही सकता था सो
भाई पूछ लिया सामने वाले से क्योंकि भाई पूछने मे क्या जाता है मेरे पूछ्ते ही वो चौंक पडी और बोली यहां
जान पे बनी है और आप को खाने की पडी है मैने कहा देखो मरना तो है ही तो भूखे पेट क्यों मरे हम दोनो ने
अपना अपना खाने का सामान निकाल कर मिल बांट के खाना शुरु ही किया था कि आ गये जगत के मामा
अरे भाई पुलिस (G.R.P.) वाले आते ही रौब गालिब करना शुरु किसका है किसका है ये ब्रीफकेस हमसे भी
पूछा हमने तो कहा अगर हमारा ही होता तो आप यहां क्या करते थक गये पूछ्ते पूछ्ते कोई नही बोला
अब बात अट्की की इस बैग का किया क्या जाय बैग को छूने के नाम पर पुलिस वालों की भी फट रही थी
और मै अड गया की भाई इस बैग को य़हां से हटाऒ लेकिन पुलिस वालो को तो जैसे सांप ही सूघ गया था
वो मेरी कोई बात सुनने वाले नही थे और मै छोड्ने वाला नही था वो बोले भाई चलती ट्रेन मे कहां ले जाय इस मुसीबत को अगला स्टेशन आने दो वहां पे उतार लेगे बात कुछ मेरे भी दिमाग मे उतरी कि सही तो कह रहा
है आखिर वो भी तो बाल बच्चे वाला है चलो मै तो मान गया और अपना ध्यान वापिस अपने रात्रि भोज जो प्यार से दिया गया था वो टूंगने (खाने) मे जुट गया खूब मिल बांट के खाया भाई आखिरी खाना ...
तभी सामने वाली सीट से अंकल जी उतरे और जब तक हम कुछ समझ पाते वो उस ब्रीफकेस को पैर से खिसकाने लगे हम सब का कलेजा मुंह को आ गया और सब लोग शोर मचाने लगे अरे भाई बम फट गया तो
पर अंकल जी थे बडे कलेजे वाले वो उसको खिसका के डिब्बे के दरवाजे तक छोड आये अब वहां की सीट वाले परेशान और साथ मे पुलिस वाले भी तब तक गाडी की लम्बी सीटी सुनाई दी बाहर खिडकी से देखा तो किसी शहर कि बिजली दूर झिलमिलाती नजर आ रही थी अब कुछ जान मे जान वापस आ रही थी लगभग १० से १२ मिनट बाद स्टेशन आया पुलिस वालो ने पह्ले से सूचना दे रक्खी थी ब्रीफकेस के स्वागत मे पूरा दस्ता मौजूद था आये और ले गये इस बिन बुलाय मेहमान (ब्रीफकेस) को अब हम सब के चेहरे देखने वाले थे खुल के मुस्कराते हुए सब ने यही कहा जान बची तो लाखो पाये और वो अकंल जी अपना सीना चौडा किया पूरे डिब्बे मे टहल रहे थे उधर हम अपना रात्रि भोज टूंग के सीट झाड रहे थे भाई पैर फैला के बैठने के लिये और क्या....


आगे पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त ...............इन्तजार करिये..

4 comments:

  1. bade naseeb wale ho bhai.
    agar tumhari jagah chhori ke sath mai hota to bhai, us briefcase ko kholta, na khulta to fenk deta.
    sahi kaha hu bhai.
    lekin kabhi kisee ladkee se mulakat hee ni hui.

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  2. aakhir safar ko manoranjak banane ke maqsad me aap ke sath-2 vo mohtrama bhi kamyab rahin ,dono hi badhayee ke layak ho ..aur us bomb se bach bhi jate bachchoo lekin ye kahin galat samay par foota to......kya hoga ..achha yatra virtant likha aapne aur padhne ko mile...intzar rahega...!!

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  3. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद अपने प्यार से अनुग्रहीत करने के लिये...

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